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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - चतुर्थ प्रश्नपत्र - अनुसंधान पद्धति

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :172
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2696
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - चतुर्थ प्रश्नपत्र - अनुसंधान पद्धति

प्रश्न- उप-कल्पना के परीक्षण में होने वाली त्रुटियों के बारे में उदाहरण सहित बताइए तथा इस त्रुटि से कैसे बचाव किया जा सकता है?

उत्तर -

उप-कल्पना का जब परीक्षण किया जाता है तो उसमें कुछ त्रुटियाँ पायी जाती हैं, इन त्रुटियों को हम Type- I तथा Type- II के नाम से जानते हैं। उप-कल्पना के परीक्षण में इस प्रकार की त्रुटियाँ सम्भव है।

Type - I Error - Type I Error को अल्फा त्रुटि (Alpha Error) भी कहा जाता है। परीक्षण करते समय इस प्रकार की त्रुटि तब होती है जब शून्य उप-कल्पना सत्य होती है लेकिन हम उसको अमान्य कर देते हैं। जैसे अगर कोई उप-कल्पना है कि घटना संयोग के कारण है यानी बालक नकल नहीं कर रहा है। यदि घटना पूर्ण रूप से संयोग के कारण है तो यह निश्चय करते हैं कि बालक नकल कर रहा था, तो इसे हम Alpha Error कहते हैं।

 

Type - II Error Type II Error को बीटा त्रुटि (Beta Error) भी कहा जाता है। परीक्षण करते समय इस प्रकार की त्रुटि की सम्भावना तब होती है जब शून्य उपकल्पना के असत्य होने पर भी आप उसे सही मान लेते हैं या ग्रहण कर लेते हैं जैसे - यदि एक सिक्का Biased है और आप निष्कर्ष निकालते है कि वह Biased सिक्का नहीं है तो आप इसे Beta Error कह सकते हैं।.

उप-कल्पना की इन दोनों त्रुटियों को उदाहरण के द्वारा अधिक स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है। इसे हम कल्पना के द्वारा समझने का प्रयास करेगें-कल्पना कीजिए कि हमारे दो समग्रों के औसतांक का अन्तर शून्य है। न्यादर्श के दो मध्यमानों (M) पर सार्थकता परीक्षण आरोपित करने पर हमें सार्थक या महत्वपूर्ण अन्तर प्राप्त होता है तब हम इसे प्रथम प्रकार की त्रुटि कहते हैं। ऐसे ही यदि दो औसतांकों में सार्थक अन्तर है और हमारे परीक्षण के द्वारा हमें महत्वपूर्ण अन्तर प्राप्त होता है इसे हम द्वितीय प्रकार की त्रुटि कहते हैं।

प्रथम प्रकार की त्रुटि (Type I Error) का उदाहरण - उप-कल्पना का परीक्षण करते समय दो प्रकार की त्रुटि से बचने की आवश्यकता होती है। अगर हम परीक्षण में निम्न सार्थकता स्तर परीक्षण के लिए करते हैं तो हम Type- I त्रुटि की सम्भावना को बढ़ा लेते हैं तथा अगर हम उच्च सार्थकता स्तर का निर्धारण परीक्षण में करते हैं तो हम Type-II Error एक सम्भावना को बढ़ा लेते हैं। जैसे- हमारे पास एक का सिक्का है जो एक शुद्ध सिक्का है परन्तु हमारे परिजन द्वारा उस सिक्के को पक्षपाती सिक्का होने का संदेह प्रकट किया जाता है। वह उस सिक्के को दस बार उछालता है और इसे उछालने में आठ चित्त (Head) तथा दो पट (Tails) प्राप्त करता है। अब हमारे परिजन यह जानना चाहते हैं कि क्या आठ चित्त के प्रति सार्थक पक्षपात है मतलब पाँच चित्त से आठ चित्त का सार्थक विचलन है। शुद्ध सिक्के की अवस्था में चित्त और पंट का वितरण पाँच-पाँच प्रत्याशित होता है।

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CR, 100 में छ: बार सम्भावित है। यदि हमारे परिजन p = .06 को सार्थक मानने के लिए तैयार है तो वह शून्य उप-कल्पना को अस्वीकार कर देगें, जबकि वह सत्य है। उनका कहना होगा कि सिक्का चित्त के लिए पक्षपाती है। अगर वह . 05 से उच्च सार्थकता स्तर (01) लेता है तो वह इस त्रुटि से बच सकता है। इसके अलावा वह अगर उछालों की संख्या दस से सौ या दो सौ कर देता है तब भी वह इस त्रुत्रिपूर्ण अनुमान से बच सकता है। ऐसी अवस्था में चित्त तथा पट की आवृत्तियों के समान आने की सम्भावना बराबर हो जाती है। इस प्रकार प्रयोगात्मक प्रदत्तों की संख्या बढ़ाकर हम शून्य परिकल्पना को सही सिद्ध करने का प्रयास कर सकते है।

द्वितीय प्रकार की त्रुटि Type II Error - किसी भी परीक्षण में उप-कल्पना में प्रथम प्रकार की त्रुटि में जैसा होता है ठीक उसके विपरीत Type II Error में होता है। जब सार्थकता का स्तर बहुत उच्च कर दिया जाता है तब द्वितीय प्रकार की त्रुटि होने की सम्भावना बढ जाती है। इस प्रकार की त्रुटि को भी सिक्के के उदाहरण के द्वारा समझा जा सकता है। अगर इसमें परिस्थितियाँ परिवर्तित कर दी जाए तथा यह मान लिया जाए कि सिक्का शुद्ध नहीं है वरन् चित्त के प्रति पक्षपाती है तथा परिजन द्वारा परीक्षण करने पर परिजन यह कहे कि सिक्का शुद्ध है जबकि सिक्का शुद्ध नहीं है। सिक्के को दुबारा दस बार उछाला गया तथा जिसमें आठ चित्त तथा दो पट प्राप्त हुए। हम इसके पहले के उदाहरण में जानते हैं कि एक अच्छे सिक्के की अवस्था में दस उछालों में आठ चित्त सौ में छः बार संयोग के द्वारा सम्भव है मतलब p = .06। इस अवस्था में यदि परिजन सार्थकता का 10 स्तर निश्चित कर देता है तो वह शून्य उप-कल्पना को सही कर देगा जबकि वास्तव में यह पक्षपाती है। इसलिए इस अवस्था में Type - II Error होगा।

उप-कल्पना में त्रुटि से बचाव परीक्षण करते समय उप-कल्पना में इन दोनों त्रुटियों से बचने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि जब भी सार्थकता में कुछ भी संशय हो तो और अधिक प्रदत्त एकत्रित किया जाए। इसके द्वारा शून्य उप-कल्पना को विगलित करने का अधिक अवसर प्राप्त हो जाता है। अधिक प्रदत्त प्रयोगों की पुनरावृत्ति तथा प्रयोगों से उत्तम नियन्त्रण, सही निर्णय के अधिक अवसर प्रदान करते हैं। अगर सिक्का चित्त के प्रति पक्षपाती है तो अधिक उछालों में पट की अपेक्षा अधिक चित्त प्राप्त होंगे। जैसे यदि दस उछालों में आठ चित्त तथा दो पट का अनुपात है तो सौ उछालों में अस्सी चित्त तथा बीस पट प्राप्त होंगे। सौ उछालों के लिए C. R. 5.9 होगा क्योंकि जब,

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जबकि दस उछालों की अवस्था में C. R = 1.58 था। यहाँ पर इस तथ्य की सम्भाव्यता है कि अस्सी चित्त संयोगिक विचलन के कारण है जो कि 01 से बहुत कम है। इसलिए प्रयोगकर्ता सही रूप से निष्कर्ष निकालेगा कि अन्तर बहुत अधिक सार्थक है।

इस प्रकार से उच्च सार्थकता स्तर निश्चित करने से Type- I त्रुटि कम हो जाएगी, परन्तु Type-II त्रुटि बढ़ जाती है। एक प्रकार की त्रुटि को कम करने से दुसरे प्रकार की त्रुटि बढ़ जाती है। इसलिए परीक्षण करते समय प्रयोगकर्ता को यह निश्चित कर लेना चाहिए कि उसे कौन-सी त्रुटि को कम करना है, जिससे सार्थक परिणाम प्राप्त हो जाए। सामाजिक शोध में Type- I त्रुटि Type-II त्रुटि की अपेक्षा गम्भीर सिद्ध होती है। इसमें अगर एक शोधकर्ता उदाहरणार्थ, गलती से महत्वपूर्ण या सार्थक परिणाम प्राप्त कर लेता है, तो परिणामों के धनात्मक होने के कारण अनुसन्धान वही बन्द हो जाता है तथा त्रुटि सदैव के लिए बनी रहती है। जब हम उच्च सार्थकता स्तर पर परीक्षण करते हैं तब कम से कम हमे इतना पता होता है कि त्रुटिपूर्ण निर्णय की सम्भावना सौ में केवल एक बार होती है।

Type-II की त्रुटियों पर उस समय ध्यान देना ज्यादा आवश्यक होता है जब शोधकर्ता घटक हानिकारक हो। जैसे यदि कोई शोधकर्ता उस औषधि के प्रभाव का अध्ययन कर रहा हो जिसका संवेग तथा स्वभाव परिवर्तन पर गम्भीर प्रभाव पड़ता है तो इस समय Type-II त्रुटि बहुत अधिक विनाशकारी सिद्ध हो सकती है।

 

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- अनुसंधान की अवधारणा एवं चरणों का वर्णन कीजिये।
  2. प्रश्न- अनुसंधान के उद्देश्यों का वर्णन कीजिये तथा तथ्य व सिद्धान्त के सम्बन्धों की व्याख्या कीजिए।
  3. प्रश्न- शोध की प्रकृति पर प्रकाश डालिए।
  4. प्रश्न- शोध के अध्ययन-क्षेत्र का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  5. प्रश्न- 'वैज्ञानिक पद्धति' क्या है? वैज्ञानिक पद्धति की विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  6. प्रश्न- वैज्ञानिक पद्धति के प्रमुख चरणों का वर्णन कीजिए।
  7. प्रश्न- अन्वेषणात्मक शोध अभिकल्प की व्याख्या करें।
  8. प्रश्न- अनुसन्धान कार्य की प्रस्तावित रूपरेखा से आप क्या समझती है? इसके विभिन्न सोपानों का वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- शोध से क्या आशय है?
  10. प्रश्न- शोध की विशेषतायें बताइये।
  11. प्रश्न- शोध के प्रमुख चरण बताइये।
  12. प्रश्न- शोध की मुख्य उपयोगितायें बताइये।
  13. प्रश्न- शोध के प्रेरक कारक कौन-से है?
  14. प्रश्न- शोध के लाभ बताइये।
  15. प्रश्न- अनुसंधान के सिद्धान्त का महत्व क्या है?
  16. प्रश्न- वैज्ञानिक पद्धति के आवश्यक तत्त्व क्या है?
  17. प्रश्न- वैज्ञानिक पद्धति का अर्थ लिखो।
  18. प्रश्न- वैज्ञानिक पद्धति के प्रमुख चरण बताओ।
  19. प्रश्न- गृह विज्ञान से सम्बन्धित कोई दो ज्वलंत शोध विषय बताइये।
  20. प्रश्न- शोध को परिभाषित कीजिए तथा वैज्ञानिक शोध की कोई चार विशेषताएँ बताइये।
  21. प्रश्न- गृह विज्ञान विषय से सम्बन्धित दो शोध विषय के कथन बनाइये।
  22. प्रश्न- एक अच्छे शोधकर्ता के अपेक्षित गुण बताइए।
  23. प्रश्न- शोध अभिकल्प का महत्व बताइये।
  24. प्रश्न- अनुसंधान अभिकल्प की विषय-वस्तु लिखिए।
  25. प्रश्न- अनुसंधान प्ररचना के चरण लिखो।
  26. प्रश्न- अनुसंधान प्ररचना के उद्देश्य क्या हैं?
  27. प्रश्न- प्रतिपादनात्मक अथवा अन्वेषणात्मक अनुसंधान प्ररचना से आप क्या समझते हो?
  28. प्रश्न- 'ऐतिहासिक उपागम' से आप क्या समझते हैं? इस उपागम (पद्धति) का प्रयोग कैसे तथा किन-किन चरणों के अन्तर्गत किया जाता है? इसके अन्तर्गत प्रयोग किए जाने वाले प्रमुख स्रोत भी बताइए।
  29. प्रश्न- वर्णात्मक शोध अभिकल्प की व्याख्या करें।
  30. प्रश्न- प्रयोगात्मक शोध अभिकल्प क्या है? इसके विविध प्रकार क्या हैं?
  31. प्रश्न- प्रयोगात्मक शोध का अर्थ, विशेषताएँ, गुण तथा सीमाएँ बताइए।
  32. प्रश्न- पद्धतिपरक अनुसंधान की परिभाषा दीजिए और इसके क्षेत्र को समझाइए।
  33. प्रश्न- क्षेत्र अनुसंधान से आप क्या समझते है। इसकी विशेषताओं को समझाइए।
  34. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण का अर्थ व प्रकार बताइए। इसके गुण व दोषों की विवेचना कीजिए।
  35. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण से आप क्या समझते हैं? इसके प्रमुख प्रकार एवं विशेषताएँ बताइये।
  36. प्रश्न- सामाजिक अनुसन्धान की गुणात्मक पद्धति का वर्णन कीजिये।
  37. प्रश्न- क्षेत्र-अध्ययन के गुण लिखो।
  38. प्रश्न- क्षेत्र-अध्ययन के दोष बताओ।
  39. प्रश्न- क्रियात्मक अनुसंधान के दोष बताओ।
  40. प्रश्न- क्षेत्र-अध्ययन और सर्वेक्षण अनुसंधान में अंतर बताओ।
  41. प्रश्न- पूर्व सर्वेक्षण क्या है?
  42. प्रश्न- परिमाणात्मक तथा गुणात्मक सर्वेक्षण का अर्थ लिखो।
  43. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण का अर्थ बताकर इसकी कोई चार विशेषताएँ बताइए।
  44. प्रश्न- सर्वेक्षण शोध की उपयोगिता बताइये।
  45. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण के विभिन्न दोषों को स्पष्ट कीजिए।
  46. प्रश्न- सामाजिक अनुसंधान में वैज्ञानिक पद्धति कीक्या उपयोगिता है? सामाजिक अनुसंधान में वैज्ञानिक पद्धति की क्या उपयोगिता है?
  47. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण के विभिन्न गुण बताइए।
  48. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण तथा सामाजिक अनुसंधान में अन्तर बताइये।
  49. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण की क्या सीमाएँ हैं?
  50. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण की सामान्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  51. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण की क्या उपयोगिता है?
  52. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण की विषय-सामग्री बताइये।
  53. प्रश्न- सामाजिक अनुसंधान में तथ्यों के संकलन का महत्व समझाइये।
  54. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण के प्रमुख चरणों की विवेचना कीजिए।
  55. प्रश्न- अनुसंधान समस्या से क्या तात्पर्य है? अनुसंधान समस्या के विभिन्न स्रोतक्या है?
  56. प्रश्न- शोध समस्या के चयन एवं प्रतिपादन में प्रमुख विचारणीय बातों का वर्णन कीजिये।
  57. प्रश्न- समस्या का परिभाषीकरण कीजिए तथा समस्या के तत्वों का विश्लेषण कीजिए।
  58. प्रश्न- समस्या का सीमांकन तथा मूल्यांकन कीजिए तथा समस्या के प्रकार बताइए।
  59. प्रश्न- समस्या के चुनाव का सिद्धान्त लिखिए। एक समस्या कथन लिखिए।
  60. प्रश्न- शोध समस्या की जाँच आप कैसे करेंगे?
  61. प्रश्न- अनुसंधान समस्या के प्रकार बताओ।
  62. प्रश्न- शोध समस्या किसे कहते हैं? शोध समस्या के कोई चार स्त्रोत बताइये।
  63. प्रश्न- उत्तम शोध समस्या की विशेषताएँ बताइये।
  64. प्रश्न- शोध समस्या और शोध प्रकरण में अंतर बताइए।
  65. प्रश्न- शैक्षिक शोध में प्रदत्तों के वर्गीकरण की उपयोगिता क्या है?
  66. प्रश्न- समस्या का अर्थ तथा समस्या के स्रोत बताइए?
  67. प्रश्न- शोधार्थियों को शोध करते समय किन कठिनाइयों का सामना पड़ता है? उनका निवारण कैसे किया जा सकता है?
  68. प्रश्न- समस्या की विशेषताएँ बताइए तथा समस्या के चुनाव के अधिनियम बताइए।
  69. प्रश्न- परिकल्पना की अवधारणा स्पष्ट कीजिये तथा एक अच्छी परिकल्पना की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  70. प्रश्न- एक उत्तम शोध परिकल्पना की विशेषताएँ बताइये।
  71. प्रश्न- उप-कल्पना के परीक्षण में होने वाली त्रुटियों के बारे में उदाहरण सहित बताइए तथा इस त्रुटि से कैसे बचाव किया जा सकता है?
  72. प्रश्न- परिकल्पना या उपकल्पना से आप क्या समझते हैं? परिकल्पना कितने प्रकार की होती है।
  73. प्रश्न- उपकल्पना के स्रोत, उपयोगिता तथा कठिनाइयाँ बताइए।
  74. प्रश्न- उत्तम परिकल्पना की विशेषताएँ लिखिए।
  75. प्रश्न- परिकल्पना से आप क्या समझते हैं? किसी शोध समस्या को चुनिये तथा उसके लिये पाँच परिकल्पनाएँ लिखिए।
  76. प्रश्न- उपकल्पना की परिभाषाएँ लिखो।
  77. प्रश्न- उपकल्पना के निर्माण की कठिनाइयाँ लिखो।
  78. प्रश्न- शून्य परिकल्पना से आप क्या समझते हैं? उदाहरण सहित समझाइए।
  79. प्रश्न- उपकल्पनाएँ कितनी प्रकार की होती हैं?
  80. प्रश्न- शैक्षिक शोध में न्यादर्श चयन का महत्त्व बताइये।
  81. प्रश्न- शोधकर्त्ता को परिकल्पना का निर्माण क्यों करना चाहिए।
  82. प्रश्न- शोध के उद्देश्य व परिकल्पना में क्या सम्बन्ध है?
  83. प्रश्न- महत्वशीलता स्तर या सार्थकता स्तर (Levels of Significance) को परिभाषित करते हुए इसका अर्थ बताइए?
  84. प्रश्न- शून्य परिकल्पना में विश्वास स्तर की भूमिका को समझाइए।

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